Friday, September 5, 2014

एक सौ पचास प्रेमिकाएँ


एक सौ पचास प्रेमिकाएँ। ये पुस्तक है राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 15 कहानियों, 144 पृष्ठों और 95 रूपये की। पुस्तक की लेखिका हैं सुश्री इन्दिरा दाँगी। लेखिका की पृष्ठभूमि बुंदेलखंड प्रतीत होती है। कहानियों का कंटैंट तो अच्छा है ही साथ ही सबसे प्रभावित करने वाली जो चीज़ है वह है उनकी भाषा और शैली। एक नवीनता है भाषाशैली में, एक तरलता है जो सहज ही उतरती जाती है। बुंदेलखंड की जो बोली है सुनने में नमकीन लगती है। हालांकि कहानियां बुंदेलखंडी में नहीं खड़ी हिन्दी में हैं लेकिन फिर भी नमक का ज़ायका आता तो है। कहानियाँ ऐसी जो खुद अपना रास्ता बनाती हैं। समझ नहीं आता कि लेखिका ने उन्हें लिखा है या आकार दिया है। वैसे तो इस पुस्तक की सारी ही कहानियाँ अच्छी हैं लेकिन मेरे पसंदीदा है - द हीरो। यह कहानी एक सामान्य क्लर्क की कहानी है जो किसी तरह अपने इलाके के मध्याह्न भोजन का बजट कम होने से बचाता है। इन कहानियों की एक बात जो सबसे अच्छी लगी कि लेखिका ने कहानियों को एब्रप्ट एंडिंग से बचाया। मसलन कई कहानीकार कहानी को एक फिलोसोफ़िकल टच देने के लिए अंत को थोड़ा विचित्र सा कर देते हैं। मैं उन्हें किसी तरह का कोई दोष नहीं दे रहा हूँ। सबकी अपनी शैली होती है। लेकिन इधर कई लेखकों की कहानी पढ़ कर नए पाठकों का ये कहना कि अंत कुछ समझ में नहीं आया अक्सर ही होता है। लेकिन इंदिरा जी की कहानियाँ ऐसी नहीं हैं। अंत बहुत अच्छे हैं।

कुल मिलाकर किताब बहुत ही अच्छी है और पढ़ने लायक है। किताब को आप Amazon से खरीद सकते हैं। 

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