Friday, February 28, 2014

ख़ूँख़ार रात


आँखों में उठता 
धुएं का गुबार है 
हवाओं में घुटती 
सिसकियों की पुकार है 
ख़ौफ़ का ये जाने 
कौन-सा प्रकार है 
घनी काली ये रात आज 
बड़ी ही ख़ूँख़ार है 

रात है ये सन्नाटों की 
भूतों की, पिशाचों की 
कुत्तों की हुँकारों की 
घात लगाए सियारों की
हब्सी हैं, अघोरी हैं
दहलाता अंधियार है  
लाशों पे हैं सबकी नज़रें 
आँखों से टपकती लार है 
घनी काली ये रात आज 
बड़ी ही ख़ूँख़ार है 

जिनके दांतों में ख़ून लगा 
वो नरभक्षी हैं घूम रहे 
सत्ता की है भूख इन्हें 
मदहोशी में झूम रहे 
अपनी हवस मिटाने को 
शैतान की ये ललकार है 
मंडराते काले सायों में 
चहुँओर चीत्कार है 
घनी काली ये रात आज 
बड़ी ही ख़ूँख़ार है 



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