Friday, February 21, 2014

यादें


बेफ़िक्र हाथों से खिंचती लकीरों में 
एक तस्वीर उभर कर आयी है 
डायरी के सूखे ग़ुलाबों से 
अहसास की ख़ुशबू लायी है 
ये यादों की पुरवाई है 

थोड़ी खट्टी, थोड़ी मीठी 
थोड़ी सौंधी, थोड़ी सूखी 
यादें हैं कुछ कच्ची-पक्की 
झिलमिल आँखें लायी है 
ये यादों की पुरवाई है 

जीवन का ये शहद अनोखा 
अवचेतन का संचय है 
किसी निमित्त से सतह पर आती 
अंतस की परछाई है 
ये यादों की पुरवाई है 

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